श्री गजानन स्तोत्र लिंक मिळवा Facebook Twitter Pinterest ईमेल अन्य अॅप्स द्वारा madhura - मार्च १२, २००९ ॥ श्री ॥ करेचे तीरी एक असे मोरगांव। तिथे नांदतो मोरया देवराव ॥ चला जाऊयात्रे महापुण्य आहे। मनी इच्छिले मोरया देत आहे ॥ लिंक मिळवा Facebook Twitter Pinterest ईमेल अन्य अॅप्स टिप्पण्या
श्री हनुमान चालीसा द्वारा explorer - जानेवारी २७, २०१२ ।। दोहा ।। श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरू सुधारि । बरनौ रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि ।। बुद्धिहीन तनु जानिके , सुमिरौ पवन कुमार । बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार ।। ।। चौपाई ।। जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहु लोक उजागर ।। रामदूत अतुलित बल धामा । अंजनि पुत्र पवन सुत नामा ।। महावीर विक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ।। कंचन बरन बिराज सुवेसा । कानन कुण्डल कुंचित केसा ।। हाथ बज्र और ध्वजा बिराजै । कांधे मूंज जनेऊ साजै ।। शंकर सुवन केसरी नन्दन । तेज प्रताप महा जग बन्दन ।। विद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ।। प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ।। सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । विकट रूप धरि लंक जरावा ।। भीम रूप धरि असुर संहारे । रामचंद्र जी के काज संवारे ।। लाय संजीवन लखन जियाये । श्री रघुबीर हरषि उर लाये ।। रघुपती किन्हीं बहुत बडाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ।। सहस बदन तुम्हरो यस गावै । अस कहि श्रीपति कंठ लगावै ।। सनकादिक ब्रह्मादि मुनिसा । नारद सारद सहित Read more »
श्री बजरंग बाण द्वारा explorer - जुलै २५, २०११ दोहा निश्चय प्रेम प्रतीति ते , विनय करें सनमान | तेहि के कारज सकल शुभ , सिद्ध करें हनुमान | | जय हनुमन्त संत हितकारी | सुनी लीजै प्रभु अरज हमारी | | जन के काज विलम्ब न कीजै | आतुर दौरि महा सुख दीजै | | जैसे कूदी सिन्धु महिपारा | सुरसा बदन पैठी विस्तारा | | आगे जाए लंकिनी रोका | मारेहु लात गई सुरलोका | | जाय विभीषन को सुख दीन्हा | सीता निरखि परमपद लीन्हा | | बाग उजारि सिन्धु महं बोरा | अति आतुर जम कातर तोरा | | अक्षय कुमार को मारी संहारा | लूम लपेटी लंक को जारा | | लाह समान लंक जरि गई | जय जय धुनी सुर पुर महं भई | | अब विलम्ब केहि कारन स्वामी | कृपा करहु उर अन्तर्यामी | | जय जय लखन प्राण के दाता | आतुर होई दुख करहुं निपाता | | जै गिरिधर जै जै सुख सागर | सुर समूह समरथ भटनागर | | ॐ हनु हनु हनुमंत हठीले | बैरिहि मारू बज्र की कीले | | गदा बज्र लै बैरिहिं मारो | महाराज प्रभु दास उबारो | | ॐ कार हुंकार महाप्रभु धावो | बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो | | ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा | ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा | | सत्य होहु हरी शपथ पायके | रामदूत धरु मारू जाय क Read more »
गुरुवंदन श्लोक द्वारा explorer - फेब्रुवारी २१, २००९ ॥श्री॥ वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभः । निर्विघ्नंकुरुमेदेवः सर्वकार्येषुसर्वदा ।। गणनाथ सरस्वती रवि शुक्र बृहस्पति । पंचेतानी स्मरेनित्यम् वेदवाणी प्रवर्तते ॥ गुरुर ब्रम्हा गुरुरविष्णुः गुरुर देवोःमहेश्वरः । गुरुर साक्षात्परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ Read more »
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